शुक्रवार, 1 जून 2018

2019 के लिए कितने योग्य राहुल?


2019 में होने वाले सियासी जंग के दो बड़े रण बांकुरे, एक तरफ सबसे बड़ी पार्टी के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो दूसरी तरफ हैं बुजुर्ग पार्टी के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी। दोनों के बीच सियासी दांव-पेंच जारी है, एक दूसरे पर जमकर तीर छोड़े जा रहे हैं, घेरने का कोई भी मौका कोई छोड़ने के मूड में नहीं है, क्योंकि 2019 में होने वाले आम चुनाव सिर्फ सत्ता की सीढ़ी नहीं है बल्कि इन दोनों नेताओं की साख भी दांव पर लगी हुई है।
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राहुल की अगुवाई में कांग्रेस 2019 का सपना संजोए हुए है, इसके लिए सहयोगी दलों के साथ उनकी कदमताल भी चल रही है, क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का पुराना नाता रहा है, सियासत का ये रिश्ता कई बार परवान चढ़ा, तो कई बार सूली पर भी लटकना पड़ा। गठबंधन के धर्म के सियासी दोस्तों को कैसे लेकर चलना है ये कांग्रेस को भली भांति आता है, शायद कांग्रेस को छोड़कर किसी और पार्टी को इसकी इतनी समझ नहीं जितनी की कांग्रेस को है। लिहाजा राहुल की ताजपोशी के लिए पूरे जोर-शोर से बैंड बाजा और बारात की तैयारी है।
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ऐसा नहीं है कि कांग्रेस जिन दलों से समर्थन लेगी उसमें कोई योग्य नेता नहीं है, कई नेता हैं जो युवा हैं और जिन्होंने समय आने पर अपनी सियासत समझ को साबित भी किया है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या वैसे नेता राहुल गांधी की अगुवाई स्वीकार करेंगे, वैसे भी थर्ड फ्रंट की कवायद कई बार हो चुकी है, लेकिन अभी तक इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है, दूसरा सवाल ये भी है कि आखिर मोदी के खिलाफ राहुल गांधी की चुनौती को कितना स्वीकार किया जाएगा। और कोई राहुल को स्वीकार क्यों करेगा

कांग्रेस के सहयोगी दलों की बात करें तो एक तरफ अखिलेश यादव हैं, जिन्होंने अपनी सियासी पहचान के लिए परिवार से ही पंगा ले लिया था, वहीं, बिहार में तेजस्वी यादव जो कि पहले डिप्टी सीएम थे और अब नेता विपक्ष बनने के बाद नीतीश कुमार और मोदी पर हमला बोलने का कोई मौका नहीं चूकते, बिहार में विरोधी दल के नेता के रूप में वो कई बार खुद को साबित कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, उनके अंदर भी पीएम बनने का सपना पल रहा है, जब वो नाराज होती हैं तो किसी को नहीं बख्शती, ममता बनर्जी ना तो कांग्रेस को घेरने में कोई कोर कसर छोड़ती हैं और ना ही मोदी सरकार में। अगर यूपी की बात करें यहां मायावती भी पीएम की दावेदारी के लिए ताल ठोक सकती हैं, वो दलित वोट बैंक पर पूरी पकड़ होने का दावा करती हैं, ऐसे में सवाल ये है कि आखिर मामता और माया राहुल की दावेदारी क्यों मंजूर करेंगी। हरियाणा और पंजाब में बीजेपी और कांग्रेस ही दो बड़ी पार्टियां हैं। ऐसे में उत्तर भारत में तो राहुल के लिए चुनौती किसी पहाड़ और समुद्र से कम नहीं।
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अगर दक्षिण की तरफ बढ़े तो कर्नाटक में कांग्रेस JDS के आगे घुटने टेक चुकी है, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू अभी एनडीए से अलग हुए हैं, और वो किस ओर जाएंगे अभी से ये कहा नहीं जा सकता तो तेलंगाना में भी चंद्रशेखर राव किसे समर्थन देंगे ये कहा नहीं जा सकता है। तमिलनाडु में रिश्तों की दुहाई देकर कांग्रेस DMK का साथ जरूर ले सकती है, लेकिन रजनीकांत और कमल हासन की पार्टी का आधार क्या होगा और वो किस ओर जाएंगे ये अभी तक तय नहीं है।

लिहाजा इस आधार पर ये को कहा जा सकता है कि 2019 के लिए विपक्षी एकता को राहुल की नहीं समुद्र मंथन की जरूरत है, और इस मंथन के बाद ही ये साफ हो पाएगा कि आखिर विरोधी एकता की अगुवाई कौन करता है और वो मोदी की दावेदारी को कितनी चुनौती दे पाएंगे।


गुरुवार, 16 मई 2013

इशारों की फिक्सिंग लीग....

इशारों की फिक्सिंग लीग....


IPL जितना लोकप्रिय हुआ उतने ही विवाद इससे जुड़ते चले गए और क्रिकेट की लोकप्रियता की वजह से मैं और आप इन विवादों को भूलते भी गए। IPL एक ऐसी क्रिकेट जहां खेल के रोमांच के साथ मस्ती का तड़का होता है खिलाड़ियों के लिए भी और थोड़ा बहुत दर्शकों के लिए भी। ये ऐसी क्रिकेट है जहां बकायदा खिलाड़ियों को खरीदा जाता है टीम में शामिल करने के लिए या यूं कहें कि खिलाड़ियों को खरीद कर टीम बनाई जाती है, खिलाड़ियों की मंडी लगती है और उन्हें पैसे भी अच्छे खासे मिलते हैं। लेकिन यही खिलाड़ी ज्यादा कमाई की लालच में मैच फिक्स करने या यू कहें की स्पॉट फिक्सिंग करने से भी नहीं चूकते।
या यूं कहें कि पहले खिलाड़ी पैसे देकर खरीदे जाते हैं और फिर यही खिलाड़ी पैसे लेकर मैच का परिणाम मैच खत्म होने से पहले ही तय कर देते हैं। अगर आपकी टीम का एक भी खिलाड़ी सटोरियों के हाथों बिक गया तो समझिए की टीम की शामत आ गई। मैदान में बिके हुए खिलाड़ी आपकी आंखों के सामने इशारों-इशारों में सब कुछ कर जाएंगे लेकिन आपको पता भी नहीं चलेगा। फिक्सिंग की पूरी क्रिकेट इशारों-इशारों में खेल ली जाएगी, लेकिन आप समझेंगे की खिलाड़ी संघर्ष कर रहे हैं और मैच बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मैदान क्या हो रहा है वो या तो खिलाड़ी जानते हैं या फिर सटोरिए।
बिके हुए खिलाड़ी और सटोरिए फिक्सिंग के लिए ऐसे इशारे को चुनते हैं जो कि मैदान में करना आम बात है...अगर मैं और आप भी मैदान में होते तो स्वभाविक रूप से ऐसी हरकतें करते। और इन्हीं इशारों का फायदा उठाया श्रीशांत, चंदीला, चव्हाण और उन्हें बुक करने वाले बुकी ने। इन्होंने देश को ये बता दिया कि आखिर इशारों-इशारों में फिक्सिंग कैसे होती है ?
इन्होंने पूरी दुनिया को ये बता दिया की आखिर लॉकेट चूमने, घड़ी चूमने, रिस्ट वॉच घुमाने, टीशर्ट ऊपर नीचे कर बीच मैदान में कैसे सबको अंधा बना कर लाखों की कमाई की जाती है। हलांकि ये सभी पकड़े गए, लेकिन एक बार भी जनता का दिल जरूर टूटा है, आईपीएल में अरबों की कमाई होती है, करोड़ों की रकम इधर की उधर होती, जनता की अपनी फेवरेट टीम पर टकटकी लगाए बैठे रहती है, लेकिन जब फिक्सिंग का गेम सामने आता है तो जनता का दिल टूटता है उसकी भावनाएं आहत होती हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत में पहली बार फिक्सिंग का गेम सामने आया है, इससे पहले भी कई खिलाड़ियों पर आरोप लग चुके हैं....लेकिन अभी तक बड़ी मछली जाल में फंस नहीं पाई है..और शायद जब तक बड़ी मछली जाल में नहीं आती तब तक फिक्सिंग की ये क्रिकेट ऐसे ही खेली जाती रहेगी।

बुधवार, 8 मई 2013

‘पिंजरे’ मेंता’ कैद सरकारी ‘तोता'



कोलगेट में सब के हाथ काले 
मीट्ठु जो कि हर दम अपने मालिक के नाम की माला जपता है..मालिक का गुणगान करता है..तो मालिक भी उसका ख्याल रखेगा ही...और जाहिर सी बात है कि अपने इस प्यारे मिट्ठु को सुरक्षित रखने के लिए वो हर संभव कोशिश करेगा....क्योंकि मालिक के दुश्मन ना जाने कब उस प्यारे से मिट्ठु को अपने कब्जे में कर ले...और उस बेजुबान का इस्तेमाल उसके मालिक के खिलाफ ही करने लगे...भला ऐसे में उस बेचारे मालिक के पास सबसे बड़ी मुश्किल अपने मिट्ठु को सुरक्षित रखने की होगी...औऱ ऐसे में उसके पास पिंजरे से अच्छी कोई चीज नहीं..जिसमें वो अपने मिट्ठु को बंद कर चैन की नींद सो सकता है....

जब बात सरकारी मिट्ठु यानी तोते की होगी तो उसका सुरक्षा कवच भी उतना ही स्टैंडर्ड होगा...और इस तोते का काम भी हाईफाई होगा....यहां मैं आपको किसी आम तोते के बारे में नहीं बता रहा हूं....तोते की जमात में शामिल हुए इस नए तोते का नाम है CBI CBI यानी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी। इस तोते के पास हर घपले, घोटाले, गैर कानूनी वारदातों की जांच कर सच तक पहुंचने की जिम्मेदारी होती है...लेकिन अपनी स्वामी भक्ति में ये तोता इतना मस्त रहता है कि ये अपने काम में भी मालिक की चापलुसी करता जाता है। देश में हुए तकरीबन हर भ्रष्टाचार की जांच यही सरकारी तोता कर रहा है, लेकिन इन जांचों के नाम पर वो अपने मालिक को बचाने की भी पूरी कोशिश कर रहा है...और इसी वजह से देश की सबसे बड़ी अदालत ने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को नया नाम दिया है सरकारी तोतावो तोता जो हर दम स्वामी भक्ति में चूर रहता है औऱ सरकार की भाषा ही बोलता है।

अब तक जब कभी भी विपक्ष को सियासी रोटियां सेंकनी होती है..तब वो सीबीआई का मुद्दा उठाता है और इसे स्वतंत्र करने की मांग करता है...समाजसेवी अन्ना हजारे भी सीबीआई को स्वायत्त बनाने की लड़ाई लड़ चुके हैं। लेकिन इनके लिए सरकार के पास हर वक्त जवाब तैयार होता था, सरकारी मंत्रियों की जब भी जुबान खुलती थी तो वो कहते की सीबीआई स्वतंत्र है और उसकी जांच में कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता।

लेकिन जब से कोयला घोटाला केस में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और सरकार और घेरना शुरू किया है, तब से सरकार को कोई जवाब नहीं सूझ रहा है और सरकार के भीतर खलबली मची हुई है। देश की सबसे बड़ी अदालत इस बात से नाराज है कि आखिर मंत्रियों ने कोयला घोटाले में तैयार की गई स्टेटस रिपोर्ट देखी कैसे ? देखी तो देखी लेकिन इस रिपोर्ट में बदलाव किस अधिकार से करा दिया ? सीबीआई भी मान चुकी है कि उसने पीएमओ, कानून मंत्री समेत कई लोगों को ये रिपोर्ट दिखाई थी और उनकी सलाह पर ही रिपोर्ट की भाषा में बदलाव किए गए थे। लिहाजा अब सुप्रीम कोर्ट को सरकार और सीबीआई के इरादे नेक नहीं लग रहे हैं।

औऱ कोर्ट ने इस मामले में कानून के हथौड़े का इस्तेमाल कर सरकार और सीबीआई से कई सवाल पूछ डाले..और सीबीआई को सरकारी चंगुल से स्वतंत्र  करने के भी निर्देश दे दिए। अदालत की सख्त टिप्पणी पर सीबीआई ने तो निष्पक्ष जांच करने का भरोसा दिया है..लेकिन सीबीआई की कार्यप्रणाली में बदलाव होने और सरकार की मनः स्थिति साफ होने में कितना वक्त लगेगा ये तो पता नहीं...लेकिन इतना तो जरूर है कि कोर्ट की टिप्पणी ने विपक्ष को हमला बोलने और इस्तीफे मांगने का एक और धमाकेदार मौका जरूर दे दिया है।

लेकिन विपक्ष में बैठ सियासी धावा बोलने वाली पार्टियां ये बताने को कतई राजी नहीं है कि उन्होंने सीबीआई के मुद्दे पर सरकार को कोसने के अलावा कौन सा काम किया है ? इस वक्त विपक्ष में बीजेपी बैठी है, उसकी अगुवाई में NDA का शासन काल भी देश ने देखा है..लेकिन पार्टी ये साफ नहीं कर रही कि वो सीबीआई को स्वतंत्र बनाने के लिए कौन सा बिल लेकर आई थी...और अब वो क्या करेगी...क्या बीजेपी इसके लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव लेकर आएगी? सिर्फ बीजेपी ही नहीं, पूरा एनडीए और सरकार की सहयोगी पार्टियां भी इस मुद्दे पर खामोश है।

यानी ये साफ है कि कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि सीबीआई आजाद हो..ऐसे में सीबीआई को कोसने से क्या फायदा.....जब कोई संस्था किसी के अधीन होगी तो वो अपने मालिक को खुश करने के लिए ही काम करेगी..भले ही उसका मालिक कैसा भी क्यों ना हो? तो ऐसे में क्या सारा दोष सीबीआई और केंद्र सरकार पर मढ़ना उचित है ? क्या विपक्ष और दूसरी पार्टियां जो हमेशा नए मुद्दे की ताक में रहती हैं वो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं?
                                                                                                  (प्रभाकर चंचल)                                          

शनिवार, 12 जनवरी 2013

महंगाई का तड़का


सावधान-सावधान-सावधान..यूपीए टू की महंगाई मेल अपने समयानुसार चल रही है...इसकी रफ्तार और बढ़ने की पूरी संभावना है...इसलिए कृप्या ध्यान दें...इस मेल से राहत का इंतजार कर रहे यात्री बेकार ही उम्मीद लगाए बैठे है..क्योंकि इस मेल के रफ्तार के जरिए सरकार अपना खजाना भरने की उम्मीद लगाए बैठी है..और इस मेल के लिए उपयुक्त ड्राइवर भी सरकार को मिल गया है..और वो हैं पूर्व जस्टिस केलकर!

आम जनता महंगाई के बोझ तले दब रही है...दाल-रोटी के लिए पैसे-पैसे जोड़ते जोड़ते लोगों की कमर टूट रही है...लेकिन सरकार के माथे पर बल तक नहीं पड़ रहा है....कुछ दिनों पहले ही सरकार ने रेल भाड़ा बढ़ाने का ऐलान कर दिया है...और अब एलीपीजी और डीज़ल की बारी है...यूपीए सरकार पहले ही एलपीजी में लोगों को झटका दे सकती है...सरकार ने पहले रियायती सिलेंडरों की सख्या फिक्स की..और अब रियायती सिलेंडरों की कीमत भी बढ़ाने के लिए कमर कस ली है...सरकार के नए नियमों के मुताबिक अब साल में छह रियायती सिलेंडर ही मिलते हैं...और बाकी सिलेंडरों पर कई रियायत नहीं मिलती...उसे बाजार भाव पर खरीदना होता है...और अब सरकार रियायती सिलेंडरों पर भी कीमत बढ़ाने जा रही है....पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने इसका ऐलान कर दिया है...पेट्रोलियम मंत्री की माने पर प्रति सिलेंडर पचास से सौ रुपए तक का इजाफा किया जाता है....यानी इसकी सीधी मार आपकी रसोई पर पड़ेगी और या आप अपने रसोई के खर्चों में कटौती करेंगे
या फिर अपने रसोई का संतुलन बनाए रखने के लिए आपको अपनी जेब और ढीली करनी पड़ेगी..

एलपीजी तो आपके रसोई का बजट बिगाड़ने ही वाला है...तो डीज़ल ने भी आपके जेब जलाने की तैयारी कर ली है....आने वाले दिनों में जब आपको डीज़ल महंगा मिले तो आप चौंकिएगा मत...क्योंकि इसकी तैयारी अभी से कर ली गई है...पेट्रोलियम मंत्री की माने तो आने वले दिनों में डीज़ल की कीमतों में प्रति लीटर तीन रूपए तक का इजाफा हो सकता है

यानी एलपीजी के बाद रही सही कसर डीज़ल पूरी कर देगा..अगर डीज़ल की कीमतों में इजाफा होता है तो पहले ट्रांस्पोर्टेशन महंगा होगा...और इसके बाद फल फूल साग सब्जी समेत तमाम जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ जाएंगी....और इसका चौतरफा मार आम आदमी को झेलना पड़ेगा.....

सरकार ने केलकर समीति की रिपोर्ट को पूरी तरह से लागू करने की योजना बना ली है....केलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी कम करन की सिफारिश की थी...इतना ही नहीं प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री भी कह चुके हैं कि देश के खजाने पर सब्सिडी का बोझ बहुत ज्यादा है और इसे कम करने की जरूरत है..यानी साफ है क आने वाले दिनों में महंगाई के बोझ तले जनता की कमर औऱ भी झुकेगी..और हाल फिलहाल में इससे छुटकारा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है



शनिवार, 5 जनवरी 2013

हर पल में खुश रहो...

ज़िंदगी को पल-पल जिओ और हर पल में खुश रहो
सुख हो दुख हो, तंगी हो मंदी हो हर पल को जिओ
खाने में मीठा ना मिले तो चीनी खाकर खुश रहो
घूमने को गाड़ी नहीं, तो बस में सफर कर खुश रहो
ठंड ज्यादा हो तो ठिठुरते हुए जिंदगी का नया मज़ा लो
दोस्तों से मिलने का वक्त नहीं तो फोन कर के खुश रहो
फोन को पैसे नहीं, को ऑफिस से चैट कर खुश रहो
लैप टॉप और टैब ना मिले तो डेस्कटॉप से काम चलाओ
टीवी एलईडी और एलसीडी नहीं तो ब्लैक-एंड व्हाइट में ही खुश रहो
खाने को पनीर ना मिले तो दाल रोटी में ही खश रहो
बीते हुए पल की मीठी यादों में ही खुश रहो
कुछ काम नहीं है तो टाइम पास कर के ही खुश रहो
आने वाले पल का पता नहीं, सपनों में ही खुश रहो
हंसते-हंसते ये पल बीत जाएंगे, वर्तमान में ही खुश रहो
जिंदगी को पल जिओ और हर पल में खुश रहो

                                                    
                                                         (प्रभाकर चंचल)

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

‘मुझे’ ज़िंदा रखना!

 'वीरा' को याद रखना

वो वीरा, वो दामिनी, वो अनामिका और वो निर्भया पूरे देश ने उसे नया नाम दिया, और पीड़ा की वक्त में उसके साथ खड़ा रहा। आज वो हमारे लिए किसी सीख से कम नहीं है और उसका संघर्ष किसी क्रांति से कम नहीं। दिल्ली में हुए गैंग रेप की इस पीड़ित छात्रा ने अस्पताल के बेड पर आईसीयू और वेंटीलेटर पर 13 दिनों तक खूब संघर्ष किया और अपनी जख्मों की सींचती हुई ये कहती रही की मुझें जिंदा रहना है..मुझे ज़िंदा रहना है। लेकिन उसकी इस पीड़ा से उस भगवान और उस खुदा का दिल भी पसीज़ गया और उसने उसे अपने पास बुला लिया। वो वीरा सही मायने में उस दुनिया में लौट गई जहां उसे इस कष्ट से मुक्ति मिल पाएगी और उसे वो प्यार मिल सकेगा जिसकी वो हकदार है।

वो वीरा चली गई नई दुनिया में, लेकिन अपने पीछे छोड़ गई करोड़ों लोगों के आंसू। इस वीरा को कोई नहीं जानता था, लेकिन उसके दर्द ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में बांध दिया। और हर कोई कानून और समाज में बदलाव के लिए आंदोलन कर रहा है और डट कर मुकाबला करने को तैयार है। वीरा भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन हम सबके बीच उसकी संघर्ष की कहानी है और उसके वो दर्द हैं जो उसने सहे थे, वीरा ने ही हमें लड़ना सिखाया था और महिलाओं को उनकी सुरक्षा और सम्मान का हक मांगना सिखाया और आज वही वीरा हम से चीख चीख कर कह रही है कि मैं तो चली गई..लेकिन अब किसी और को दामिनी, अनामिका, निर्भया और वीरा मत बनने देना।
वीरा की आवाज खामोश हो चुकी है लेकिन वो कह रही है कि मुझे भूलना मत, मुझे हमेशा याद रखना और मैंने जो क्रांति की इबारत लिखी थी उसे आगे भी बुलंद करते रहना जिससे की हमारे देश में महिलाओं को सम्मान मिल सके और आने वाला वक्त भी हमें याद रखे और तुम हमें हमेशा के लिए अमर बनाए रखना। वीरा की ये आवाज़ हम सबके बीच गूंज रही है, और यही वजह है कि पूरा देश एकजुट होकर वीरा के लिए इंसाफ की मांग कर रहा है।

वीरा की मौत के बाद देश के प्रथम नागरिक प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी ने भी दुख व्यक्त किया और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही। सोनिया गांधी ने यहां तक कहा कि वो एक महिला और मां होने के नाते इस दर्द को समझ सकती है, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी तीन बेटियों का पिता होने का रोना रो चुके हैं तो शीला दीक्षित ने कहा कि उन्हे इस घटना पर शर्म भी आती है और दुख भी होता है। लेकिन बड़ी बात ये है कि जब इन्हें इस हादसे पर दुख है तो वो उस दिन सामने क्यों नहीं आए जब विजय चौक और राजपथ पर प्रदर्शनकारी लाठियां खा रहे थे, क्या देश में जुर्म के खिलाफ आवाज़ उठाना गुनाह है?

लेकिन वीरा की मौत ने पूरे हिंदुस्तान को झकझोर कर रख दिया है..और हर कोई अब आगे बढ़ कर इंसाफ के लिए आवाज़ उठा रहा है, लेकिन हमें भी अब इस जलती मशाल को बुझने से रोकना होगा जिससे कि जरुरत पड़ने पर इससे अंधियारे को दूर किया जा सके और देश में सभ्य समाज और कानून की स्थापना हो सके।
                                                                                                            (प्रभाकर चंचल)

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

हमें कब आएगी शर्म?


दरिंदों से कब मुक्त होगा समाज?
क्या हमारे देश में कानून का डर खत्म हो गया है ? क्या कानून अपनी भूमिका सही तरीके से नहीं निभा पा रहा है, क्या हमारे अंदर की इंसानियत दफ्न हो गई है और क्या आधुनिक समाज का चोला ओढ़े हमारा शरीर, दिमाग और दिल से खोखला होता जा रहा है ? ये सब सवाल इसलिए क्योंकि आज कल जो कुछ भी हो रहा है वो दरिंदगी से कम नहीं है, और ना ही इस वारदात को अंजाम देने वाले लोग इंसान हैं, क्योंकि इंसान समाज को जोड़ता है तोड़ने का काम नहीं करता, वो सिर्फ समाज के बने रीति रिवाजों का पालन करता है, ना कि इसकी परिधि को लांघ कर कालिख पोतने का काम करता है। हमारी सभ्यता और हमारे समाज ने कभी भी हमें किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं सिखाया, फिर हम हमेशा ऐसा ही क्यों करते हैं? जब हम किसी की भलाई के बारे में कुछ सोच नहीं सकते तो हमे किसी को नुकसान पहुंचाने का हक़ किसने दिया ?
देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर एक बार फिर से दरिंदगी का नंगा नाच देखने को मिला, राजधानी की एक व्यस्त सड़क पर एक चलती बस में एक लड़की की इज्जत तार-तार कर दी गई, बस में मौजूद सभी ने लड़की के दोस्त के सामने उसे अपने हवस का शिकार बनाया, और फिर दोनों के कपड़े फाड़ कर उन्हें सड़क के किनारे फेंक दिया, और जब इसकी शिकायत पुलिस के पास पहुंची तो गैंग रेप का मामला सामने आया।

जैसा कि बलात्कार शब्द ही अपने आप में एक क्रूर और मन को झकझोरने वाला और रूह को कंपा देने वाला शब्द है, इसी क्रूरता के साथ दरिंदों ने भी वारदात को अंजाम दिया। इस वारदात में पीड़ित लड़का और लड़की करीब रात के साढ़े नौ बजे फिल्म देख कर लौट रहे थे, और उन्हें द्वारका जाना था,और मुनिरका से ये एक व्हाइट लाइन बस में सवार हो गए, इसके बाद जो कुछ भी हुआ उन दोनों ने इसके बारे में कभी सोचा भी नहीं होगा। बस में सवार होने के कुछ देर बस स्टाफ ने इनके साथ अभद्र व्यवहार शुरू कर दिया, विरोध करने पर लड़के की पिटाई की गई..और उसे लहू लुहान कर दिया और फिर लड़के के हाथ पैर बांध कर वो लड़की को केबिन में ले गए औऱ फिर उसके साथ सामुहिक दुष्कर्म किया। इस बस के शीशे काले थे और उनमें पर्दा भी लगा हुआ था, और पूरी वारदात के दौरान बस के अंदर की लाइट भी बंद थी। इस पूरी वारदात को चलती बस में अंजाम देने के बाद दरिंदे लड़के और लड़की को नंगी अवस्था में सड़क के किनारे फेंक कर फरार हो गए। इन दोनों को जिस अवस्था में बस से फेंका गया उससे इन दिनों को काफी चोटें भी आई है, और लड़की के साथ वो जिस दरिंदगी से पेश आए उसे लड़की की आंत और लोअर एबडोमेन को काफी नुकसान पहुंचा है।

दरिंदे अपना काम पूरा कर फरार हो गया, लेकिन इसके बाद जो कुछ भी हुआ वो भी किसी शर्मनाक स्थिति से कम नहीं था, जाहिर है कि पुलिस मौके पर देर से पहुंची, लेकिन इस दौरान मौजूद किसी भी शख्स ने लड़के और लड़की के तन को ढंकने की कोशिश नहीं की और ना ही किसी पुलिस को सूचित करना ही मुनासिब समझा, इतना ही नहीं जब पुलिस मौके पर पहुंची तब भी किसी ने उन दोनों को उठाने में पुलिस की मदद नहीं की। वारदात के बाद सभी दोषियों को फांसी की सज़ा देने या फिर उन्हें नपुंसक बनाने की मांग कर रहे हैं, जाहिर है उनमे वो लोग भी होंगे जो उस वक्त मौके पर मौजूद होंगे। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि उस वक्त वो उनकी मदद के लिए आगे क्यों नहीं आए? ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, हर बार यही देखते को मिलता है कि आरोपी वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाता है लेकिन इसके बाद लोग पीड़ित को घूरते हैं बजाय उसकी मदद करने के।

हर बार ऐसा ही होता है कि हम किसी भी बड़े वारदात के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताकर अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलते हैं, लेकिन इस वारदात के बाद हमारी जो भूमिका होती है उसे भूल जाते हैं और मूक दर्शक बने रहते हैं, यही सोचते हैं कि आखिर ऐसे पचड़े में कौन पड़ेगा? और कभी ये नहीं सोचते हैं कि हमारी सजगता से समाज का भला हो सकता है, या किसी की ज़िंदगी बच सकती है।

हर किसी के जुबान पर सिर्फ यही सवाल है कि इस दौरान बस ना जाने कितने ट्रैफिक सिग्नल और कितने ही बैरिकेडिंग से होकर गुजरी होगी, लेकिन पुलिस का इस पर ध्यान क्यों नहीं गया? इस वारदात के बाद हर कोई दिल्ली पुलिस की आलोचना ही कर रहा है, लेकिन ये नहीं सोच रहा कि जिस रोड पर चलती बस में ये क्रूर हादसा हुआ उस वक्त सैकड़ों गाड़ियां भी उस बस की बगल की गुजरी होंगी, सैकड़ों लोग पैदल भी चल रहे होंगे लेकिन उनका ध्यान भी उस ओर नहीं गया।
ऐसे सवाल खड़े कर के हर पुलिस की उनकी गलतियों का एहसास तो करा सकते हैं, लेकिन जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते, अगर हम हमारे समाज को सुरक्षित देखना चाहते हैं तो हमें जागना होगा और पुलिस के लिए आंख, कान और नाक बनना होगा. तभी हम पुलिस का साथ देकर ऐसे दरिंदों को समाज को बचा सकते हैं
                                                      (प्रभाकर चंचल)